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मोहन भागवत का जीवन परिचय
मोहन माधव भागवत, जिन्हें आमतौर पर मोहन भागवत आरएसएस के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वर्तमान सरसंघचालक (प्रमुख) हैं। उनका जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ था। उनका परिवार आरएसएस के साथ लंबे समय से जुड़ा हुआ था, जिससे उनका रुझान भी संगठन की ओर हुआ।
भागवत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चंद्रपुर और उसके बाद नागपुर विश्वविद्यालय से की, जहाँ उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के बाद, उन्होंने पशु चिकित्सा में भी प्रशिक्षण प्राप्त किया, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपना पूरा जीवन संघ के प्रति समर्पित करने का निर्णय लिया।
आरएसएस से जुड़ाव और नेतृत्व:
मोहन भागवत का आरएसएस से जुड़ाव उनके किशोरावस्था के दिनों में ही हो गया था। उन्होंने आरएसएस के अलग-अलग स्तरों पर कार्य किया और संगठन की विचारधारा को समझा और आगे बढ़ाया।
2009 में, उन्होंने के. एस. सुदर्शन की जगह ली और आरएसएस के छठे सरसंघचालक बने। उनके नेतृत्व में, संगठन ने कई सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी उपस्थिति को और मजबूत किया है।
मोहन भागवत आरएसएस के कार्यकाल में संघ ने अपनी विचारधारा को अधिक व्यापक रूप से प्रचारित करने की कोशिश की, और उन्होंने संघ को एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में स्थापित करने का काम किया, जो भारतीय मूल्यों, संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है।
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मोहन भागवत आरएसएस: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
आरएसएस: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। यह संगठन मुख्य रूप से हिंदू समाज को संगठित करने, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार के उद्देश्य से कार्य करता है।
हालांकि, आरएसएस का प्रभाव राजनीति, शिक्षा, और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जाता है। संघ की शाखाओं में हर दिन लाखों स्वयंसेवक शारीरिक व्यायाम, खेल और बौद्धिक चर्चाओं के माध्यम से संघ की विचारधारा का पालन करते हैं।
मोहन भागवत का दृष्टिकोण और विचारधारा
मोहन भागवत ने आरएसएस की परंपरागत विचारधारा को समकालीन मुद्दों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है।
वे भारत को एक “वैश्विक गुरु” के रूप में देखते हैं और भारतीय संस्कृति की सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं। उनके अनुसार, भारत की समस्याओं का समाधान भारतीयता में निहित है, और इसके लिए समाज को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है।
उन्होंने बार-बार यह भी कहा है कि आरएसएस किसी भी राजनीतिक दल का संगठन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संगठन है जिसका उद्देश्य समाज का निर्माण करना है। इसके बावजूद, आरएसएस भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ अपने वैचारिक जुड़ाव के कारण चर्चा में रहता है।
आधुनिक संदर्भ में आरएसएस का विकास
मोहन भागवत के नेतृत्व में, संघ ने अधिक संवादात्मक और व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। भागवत ने कई मौकों पर विभिन्न समाजों, धार्मिक समूहों और संगठनों के साथ संवाद स्थापित किया है। उन्होंने जातिवाद, समानता, और धार्मिक सहिष्णुता जैसे मुद्दों पर खुले विचार व्यक्त किए हैं।
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मोहन भागवत आरएसएस: और मोहन भागवत की विचारधारा
आरएसएस और मोहन भागवत की विचारधारा: भारतीयता, राष्ट्रवाद और समाज सुधार
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक पहचान की रक्षा और उसे सुदृढ़ करना था।
आरएसएस की विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित है, जिसका अर्थ केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से है। इसके अंतर्गत हिंदू समाज की एकता और भारतीय संस्कृति का पुनर्निर्माण मुख्य उद्देश्य हैं।
हिंदुत्व और भारतीयता
आरएसएस हिंदुत्व को केवल धार्मिक अवधारणा नहीं मानता, बल्कि इसे एक समग्र सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय पहचान के रूप में देखता है। उनके अनुसार, ‘हिंदू’ शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के सभी निवासियों के लिए प्रयुक्त होता है, और यह केवल धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है जो सदियों से भारतीय संस्कृति का केंद्र रही है।
आरएसएस का मानना है कि भारत की समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब भारतीय समाज अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रहे। वे भारतीयता को सर्वोपरि मानते हैं और इसे समग्र समाज के विकास का आधार मानते हैं।
राष्ट्रवाद और स्वाभिमान
आरएसएस के लिए राष्ट्रवाद एक केंद्रीय अवधारणा है। उनका राष्ट्रवाद भारतीय सांस्कृतिक गौरव और राष्ट्रीय स्वाभिमान से प्रेरित है। वे भारत को “मातृभूमि” और “पवित्र भूमि” के रूप में देखते हैं और सभी भारतीयों से अपने देश के प्रति निष्ठा और सेवा की अपेक्षा करते हैं।
मोहन भागवत आरएसएस का नेतृत्व इस दिशा में और अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने अक्सर कहा है कि भारत की पहचान उसकी सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक एकता में है, और इसे मजबूत करने के लिए सभी को मिलकर कार्य करना चाहिए।
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मोहन भागवत आरएसएस: की विचारधारा:
मोहन भागवत की विचारधारा:
मोहन भागवत, आरएसएस के छठे सरसंघचालक के रूप में, संगठन की पारंपरिक विचारधारा का पालन करते हैं, लेकिन उन्होंने इसे आधुनिक संदर्भ में अधिक प्रासंगिक बनाने की कोशिश की है। उनके कुछ प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं:
समावेशी हिंदुत्व:
मोहन भागवत के नेतृत्व में, आरएसएस ने एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है। उन्होंने कई बार स्पष्ट किया है कि हिंदुत्व सभी भारतीयों की संस्कृति और जीवन शैली से जुड़ा हुआ है, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय के हों। उनके अनुसार, सभी भारतीय समान रूप से देश के नागरिक हैं और उन्हें समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। भागवत ने यह भी कहा है कि आरएसएस किसी भी प्रकार के जातिवाद या भेदभाव का समर्थन नहीं करता, और समाज में समानता और बंधुत्व को बढ़ावा देना संघ का उद्देश्य है। सामाजिक समरसता और जातिगत भेदभाव का उन्मूलन मोहन भागवत ने जातिगत भेदभाव और असमानता को भारतीय समाज के लिए हानिकारक बताया है। वे अक्सर कहते हैं कि सभी भारतीयों को एक ही समाज का हिस्सा मानते हुए, जातिवाद का उन्मूलन किया जाना चाहिए।
आरएसएस ने विभिन्न स्तरों पर इस दिशा में काम किया है, और मोहन भागवत का यह मानना है कि समाज को एकजुट करने के लिए जाति आधारित विभाजन को समाप्त करना आवश्यक है।
शिक्षा और संस्कृति पर जोर
भागवत शिक्षा को समाज के विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। वे भारतीय शिक्षा प्रणाली में भारतीय मूल्यों और संस्कृति का समावेश करने की बात करते हैं। उनका मानना है कि भारत के भविष्य के लिए आवश्यक है कि शिक्षा प्रणाली युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयता, सामाजिक सेवा और सांस्कृतिक गौरव की भावना पैदा करे।
उन्होंने भारतीय इतिहास, धर्म, और संस्कृति पर आधारित पाठ्यक्रमों के निर्माण का समर्थन किया है, ताकि बच्चों को भारतीयता और राष्ट्र की महान परंपराओं के बारे में जानकारी हो।
धार्मिक सहिष्णुता और संवाद
मोहन भागवत आरएसएस ने धार्मिक सहिष्णुता और आपसी संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में भी प्रयास किए हैं। उन्होंने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि भारत में सभी धर्मों और समुदायों को एक साथ मिलकर रहना चाहिए।
उन्होंने कहा है कि ‘हम सब भारतीय हैं,’ चाहे किसी का धर्म कुछ भी हो। उनके अनुसार, सांप्रदायिक एकता और सामाजिक समरसता भारत के भविष्य के लिए अनिवार्य हैं।
स्वदेशी और आत्मनिर्भरता
मोहन भागवत और आरएसएस का आत्मनिर्भर भारत पर भी गहरा विश्वास है। वे स्वदेशी उद्योगों, उत्पादों और सेवाओं को बढ़ावा देने की बात करते हैं। उनके अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने के लिए आत्मनिर्भरता और स्वदेशी मॉडल को अपनाना जरूरी है।
परिवार और समाज के मूल्य
आरएसएस और मोहन भागवत पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक ढांचे को बहुत महत्व देते हैं। उनका मानना है कि एक सशक्त समाज तभी बनाया जा सकता है जब परिवार इकाई के रूप में सशक्त हो। इसलिए, परिवार और समाज में परस्पर सहयोग, सम्मान, और एकता को बनाए रखना आवश्यक है।